राम प्रसाद बिस्मिल ! अशफाकुल्ला खां ! ठाकुर रोशन सिंह ! राजेंद्रनाथ लाहिड़ी के बारे में
19 दिसंबर की तारीख भारत के इतिहास में काफी अहम है। यही वह तारीख है जब साल 1927 में देश के महान क्रांतिकारियों अशफाकउल्लाह खान और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई थी। फांसी की वजह काकोरी कांड था। आइए उन तीन क्रांतिकारियों और काकोरी कांड के बारे में विस्तार से जानते हैं…

राम प्रसाद बिस्मिल
राम प्रसाद बिस्मिल प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे जो ऐतिहासिक काकोरी कांड में शामिल थे। उनका जन्म 11 जून, 1897 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन नाम के क्रांतिकारी संगठन के संस्थापक सदस्य थे। उन्हीं के नेतृत्व में काकोरी कांड को अंजाम देने की योजना बनाई गई थी।
2. अशफाकुल्ला खां
अशफाकुल्ला
खां का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर में हुआ था। बिस्मिल से उनकी गहरी दोस्ती थी। जेलर मुस्लिम था, उसने धर्म का फायदा उठाकर बिस्मिल और अशफाकुल्ला के बीच फूट डालने की कोशिश की। लेकिन दोनों की दोस्ती इतनी मजबूत थी कि वह अशफाकुल्ला को टस से मस नहीं कर सका। काकोरी कांड में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। वह ब्रिटिश शासन को चकमा देकर हिरासत से फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन एक पठान दोस्त की गद्दारी की वजह से फिर गिरफ्तार हो गए।
3.️ ठाकुर रोशन सिंह
उनका जन्म 22 जनवरी, 1892 को शाहजहांपुर में हुआ था। वह वास्तव में एक शार्प शूटर और बहुत अच्छे रेसलर थे। वह शाहजहांपुर में आर्य समाज से भी जुड़े थे। बिस्मिल से उनकी मुलाकात 1922 में हुई थी। चूंकि बिस्मिल को एक शॉर्प शूटर की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने ठाकुर रोशन सिंह को अपने संगठन का सदस्य बना लिया। रोशन सिंह को पार्टी में शामिल होने वाले युवाओं को शूटिंग सिखाने का काम सौंपा गया। काकोरी कांड में ठाकुर रोशन सिंह शामिल नहीं थे, फिर भी उनको गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दी गई। उनके बारे में एक रोचक बात यह है कि जब जज ने 'फाइव इयर्स' सजा सुनाई तो वह समझें कि उनको पांच साल की सजा दी गई है। इस पर वह जज को राम प्रसाद बिस्मिल के बराबर सजा नहीं देने के लिए गाली देने लगे। जब उनको बताया गया कि उनको भी फांसी की सजा दी गई है तब जाकर शांत हुए।
4. राजेंद्रनाथ लाहिड़ी
आज के बांग्लादेश में उनका जन्म हुआ था। नौ साल की उम्र में वह परिवार के साथ बनारस आ गए थे। बनारस में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। बनारस में उनका सम्पर्क प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल से हुआ और वह आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। बाद में वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए और राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी कांड में हिस्सा लिया। उनको निर्धारित तारीख से 2 दिन पहले ही 17 दिसंबर, 1927 को गोंडा जिला जेल में फांसी दे दी गई।
Note – ये घटना एक ट्रेन लूट से जुड़ी है, जो 9 अगस्त, 1925 को काकोरी से चली थी. आंदोलनकारियों ने इस ट्रेन को लूटने का प्लान बनाया था. जब ट्रेन लखनऊ से करीब 8 मील की दूरी पर थी, तब उसमें बैठे तीन क्रांतिकारियों ने गाड़ी को रुकवाया और सरकारी खजाने को लूट लिया.