Hindi poetry (शायरी) : दवा असर ना करे तो नज़र
उतारना भी जानती है
माँ है जनाब, वो कभी हार
नहीं मानती हैं |

आपके “इश्क़” का ऐलान बने बैठे हैं,
हम फ़क़ीरी में भी सुल्तान बने बैठे हैं,
मैं अपनी पहचान बताऊँ तो बताऊँ कैसे,
जबकि हम ख़ुद तेरी पहचान बने बैठे हैं।
अब आ गए हो आप तो
आता नहीं कुछ याद,
वरना कुछ हमको आप से
कहना ज़रूर था।
याद कर रहे थे बस शिकवे करने को तुमसे,
तुम आए तो इश्क़ है,ये बात दोहरा दिए..!!
मुझे पहले लगता था, जाति मसला है,,,
मैं फिर समझ गया इश्क़ कायनाती मसला है….
एक गलती रोज कर रहे है हम ,
जो मिलेगी नहीं , उसी पे मर रहे हैं हम |