World Hindi Day 2021: हिंदी की मजबूती का मूलमंत्र उदारता 2023
आज विश्व हिंदी दिवस है। इस अवसर पर एक बेहद दिलचस्प किस्सा याद आ रहा है। बात ग्यारह अप्रैल 1941 की है। जबलपुर में सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार स्टूडेंट्स फेडरेशन का एक सांस्कृतिक अधिवेशन होना तय हुआ था। फेडरेशन के सचिव चाहते थे कि इस अधिवेशन का शुभारंभ अभिनेता और निर्देशक किशोर साहू करें।
किशोर साहू को आमंत्रित करने के लिए वो बांबे (अब मुंबई) पहुंचे और उनसे मिलकर अपना प्रस्ताव उनके सामने रखा। किशोर साहू ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया और नियत दिन वो जबलपुर पहुंच गए। उस वक्त तक किशोर साहू की तीन फिल्में लोकप्रिय हो चुकी थीं और एक निर्माता के तौर पर भी उनकी पहचान बन चुकी थी। रेलवे स्टेशन पर अभिनेता किशोर साहू के स्वागत में काफी लोग जुटे थे। स्टेशन पर ‘कॉमरेड किशोर साहू जिंदाबाद’ का नारा भी लगाया गया था।
किशोर साहू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ‘राजनीतिक क्षेत्र में मैने कोई तीर नहीं मारा था, कोई विशेष कॉमरेडी नहीं दिखाई थी।‘ बावजूद इसके उनके स्वागत में कॉमरेड किशोर साहू जिंदाबाद का नारा लगा था। इस प्रसंग पर विचार करने से वामपंथ का वो पहलू सामने आता है जिसमें वो लोगों को छद्म नारों आदि से भरमाते रहे हैं। खैर यह अवांतर प्रसंग है जिसपर फिर कभी चर्चा।